मनोरंजन

ग़ज़ल – विनोद निराश

क्या कहे कहने को क्या पास है ,

मन ये दुखी और दिल उदास है।

 

भला वो क्या जाने दर्दे-जुदाई,

हमें तो जख्मे-दर्द का पास है।

 

वो जुदा क्या हुए हमें छोड़ कर ,

सूनी गलियां पनघट उदास है।

 

जो थे हमारे मुखालिफ कभी,

वही उनकी नज़र में खाश हैं।

 

नहीं भूला हूँ  उसे अब तलक ,

मगर न आरज़ू न तलाश है।

 

किससे बयां करे हम हाले-दिल,

दिल जार- जार मन निराश है।

– विनोद निराश , देहरादून

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