दुश्मन विषाणु विश्व का मधुरस गटक गया ।
रोटी गयी गरीब की सब कुछ सटक गया।
क्या आप जानते नहीं बेशर्म मुल्क को ,
ये चीन के विज्ञान का शीशा चटक गया ।
हमने कभी यकीन से जाना नहीं खुदा ,
पूरा जहान देख लो उल्टा लटक गया ।
थी मूक प्रार्थना कभी गायब अजान थी ,
उन्माद जाति धर्म कोरोना झटक गया।
जो आसमान नापता फिरता जरीब से ,
ऐसे अमीर मुल्क को धरती पटक गया ।
कहते नहीं थकते थे हम भारत महान है ,
वो प्राण वायु के लिए दर दर भटक गया ।
ये छाज भाँति काम कोरोना किया नहीं ,
थोथे अनाज की जगह साबुत फटक गया ।
कालीन लाख के बिछे उसके दलान में ,
बाबा चिकित्सकों को चिड़ा के मटक गया ।
साहित्य चापलूस चाटूकार हो गया ,
“हलधर” कहा अदीब की आँखों खटक गया।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून