प्रीति की रीति जग को सिखाते चलो,
टूटते घर जतन से बसाते चलो।
कष्ट देकर किसी को न पाओ खुशी,
साथ इंसानियत का निभाते चलो।
लोक हित से बड़ा धर्म कोई नहीं,
आप व्यवहार से यह बताते चलो।
एक परिवार संसार यह बन सके,
दायरा मित्रता का बढ़ाते चलो।
क्या पता शाम कब जिंदगी की ढले,
प्रेम का दीप उर में जलाते चलो।
— मधु शुक्ला. सतना, मध्यप्रदेश .