हिंदी तुलसी की चौपाई है,
मीरा के भजनों की शहनाई है।
निराला की निर्मल प्रवाह सी,
महादेवी के कृतित्व की तरुणाई है।
हिंदी कालीदास की प्याला है,
बच्चन की सुधामयी मधुशाला है।
कबीरा की संदेश वाणी सी,
सूरदास जी की पाठशाला है।
हिंदी प्रेमचंद की धारा है,
मैथिली की कविता का पारा है।
जायसी की ग्रंथावली सी,
भूषण की आंख का तारा है।
हिंदी परसाई की जादुई व्यंग है,
अटल वाणी की तरंग है।
माखनलाल की रसधार सी,
भवानी लाल की काव्य पतंग है।
हिंदी नीरज का मधुर गीत है,
रघुवीर सहाय जी का संगीत है।
सोम की रसमयी प्याला सी,
गजानन माधव की मीत है।
हिंदी जयशंकर का गौरव मान है,
सुभद्रा जी के वीर रस की तान है।
काका हाथरसी के विनोद सी,
रविन्द्र नाथ का राष्ट्र गान है।
– कवि संगम त्रिपाठी
जबलपुर, मध्यप्रदेश