दुआ की जरूरत दवा क्या करे,
कहाँ वो महारत बता क्या करे।
जहर से भरी जब लगे हर जुबां,
वफा या जफा कह वहां क्या करे।
गरम हैं हवायें जलाये जिगर,
चले ना गुजारा नया क्या करे।
इरादा सदा दिल मसोसे यहाँ,
फिकर जिंदगी का बयां क्या करे।
अभी दूर जाना किनारा किधर,
नहीं है पता कुछ अदा क्या करे।
जरा सोंचिये अब मुहब्बत कहाँ,
अदावत करे सब दया क्या करे।
सदा ‘अनि’ कराहे पुकारे किसे,
दिखे ना शराफत बता क्या करे।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड