मनोरंजन

बोधि की चुप्पी – डॉo सत्यवान सौरभ

 

शांत है लुंबिनी की पगडंडी,

जहाँ फूलों ने पहले देखा प्रकाश,

राजकुमार की पहली हँसी में,

छुपा था अनंत का एक उलझा प्रकाश।

 

जन्मा था एक प्रश्न वहाँ,

चक्रवर्ती नहीं, चैतन्य का दीपक,

महलों की आभा से दूर,

सत्य का नन्हा एक दीपक।

 

बोधिवृक्ष के पत्तों में,

बहती है अनहद की बयार,

तप की चुप्पी, सत्य की पुकार,

जिसने अंधेरों को सीखा दिया,

प्रकाश का अनादि व्यापार।

 

कपिलवस्तु की गलियों में,

गूँजता है अब भी वो प्रश्न,

जीवन का सत्य क्या है?

दुख की गाँठें क्यों हैं?

 

महापरिनिर्वाण की शांति,

कुशीनगर की माटी में बसी,

जहाँ देह नहीं, पर जीवन का अर्थ,

साँसों में घुली एक अनंत हँसी।

 

साक्षी है ये धरती,

हर बोधि की फुसफुसाहट का,

जहाँ मौन से फूटा था अमरत्व,

और जाग उठा था एक विश्व का सत्य।

– डॉ.सत्यवान सौरभ, उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045

 

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