देश की रगो में लहू नहीं लावा सिंदूर दौड़ रहा है।
लेकर वैरी बदला सिंदूर का हिंद गुरूर दौड़ रहा है।
किया चारो खाने चित दुश्मन हुआ हल्का बक्का।
लुटा पीटा हांफता घसीटता अब मगरुर दौड़ रहा है।
सोचा नहीं था पाक लेगा बदला भारत आतंक का ।
जर्रा-जर्रा मिला के मिट्टी देश का सुरूर दौड़ रहा है।
करोड़ों की आह का असर तो होना ही था पाक पर।
हिंद से खाकर खौफ वैरी दर-दर बेफिजूल दौड़ रहा है।
लोहा-लेना भारत महान से अब किसी बुते में है नहीं।
हिंद सेना की शान भारती जग में जरूर दौड़ रहा है।
– श्याम कुंवर भारती, बोकारो, झारखंड