हुआ जब क्रुद्ध सूरज लोग घबराये।
सहेजे वृक्ष उन पर प्यार बरसाये।
सखा का साथ तजकर सुख नहीं मिलता।
मिले उपयुक्त पोषण पुष्प तब खिलता।
भुला इस ज्ञान को संताप हम पाये….।
हितैषी का जहां अपमान होता है।
प्रगति रुकती मनुज का चैन खोता है।
कभी छल, स्वार्थ घर में सुख नहीं लाये…।
भुलाकर बात बीती जाग जायें हम।
धरा पर वृक्ष की चादर बिछायें हम।
सुधारे भूल वे ही बंधु मुस्काये ….।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश