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बुद्धम् शरणम् गच्छामि – क्षमा कौशिक

 

शाक्य वंश के नृप शुद्धोधन जग में जिनका नाम।

कपिल वस्तु रजधानी जिनकी स्वर्ग तुल्य था धाम।।

 

जन्म लिया इक दिव्य शिशु ने नाम दिया सिद्धार्थ।

जिसने अपना सब कुछ वारा जिया सदा परमार्थ।। ।।

 

धन्य हुई माता महमाया उदित हुआ सौभाग्य।

देख त्रिविध संताप जगत के मन उपजा वैराग्य।। ।।

 

हुए विरक्त देख जग पीड़ा कैसे दुःख हों दूर।

जीवन सबका ही हो जाए खुशियों से भरपूर।।

 

त्याग सभी सुख निज महलों के किया विपिन प्रस्थान।

त्याग पुत्र पत्नी धन वैभव चले खोजने ज्ञान।।

 

बोध गया में वट के नीचे  पाया अमृत ज्ञान।

लोभ मोह मद मत्सर ही हैं सब दुःखों की खान।।

 

तृष्णा है सब दुख का कारण उन्हें हुआ यह बोध।।

बहुत दिनों तक इसी सत्य पर किया उन्होंने शोध।।

 

चार सत्य अरु अष्ट मार्ग पर डाला विशद प्रकाश।

कैसे हों सुखमय सब मानव हो समूल दुख नाश।।

 

अष्ट मार्ग पर चलने वाले कहलाते है बुद्ध।

सत्य मार्ग पर चलकर सबका मानस होता शुद्ध।।

 

बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर उनकों करें प्रणाम।

उनके उपदेशों पर चलकर हों सफल सब काम।।

– क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड

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