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मृत्यु का मर्म और मोक्ष का मेला – डॉ. सत्यवान सौरभ

बोल उठे बाबा बागेश्वर,

“मृत्यु है मृगमरीचिका भर।

शरीर छूटे, आत्मा हँसे,

मोक्ष वही जो भय से न डरे।”

 

धूप थी, भीड़ थी, जयकारा था,

पर एक दृश्य भीतर ही कुछ हारा था।

लो, आया वह साधु सम्राट,

अपने पीछे सुरक्षा की बारात।

 

चार थानों की छाँव में कथा चली,

धर्म हैरान था, गाड़ी बुलेटप्रूफ चली।

संग थे अंगरक्षक, बाउंसर, पहरेदार,

मोक्ष का रास्ता था, जैसे जेल की दीवार।

 

श्रद्धा खड़ी थी नंगे पाँव,

और बाबा के चारों ओर लोहा था, काँच का छाव।

भक्तों ने पूछा —

“बाबा! जो अमर है, उसे भय किस बात का?”

बाबा मुस्काए —

“यह भी एक लीला है प्रभु की सौगात का।”

 

कभी कहते — “भीड़ में मरे तो मोक्ष मिलेगा”,

अब कहते — “भीड़ से डर है, व्यवस्था कड़ी रखो भैया।”

क्या यही है त्याग? यही सन्यास?

या है धर्म अब एक सुरक्षित विकास?

 

जिस देह को त्यागने की बात हो रही,

उसी के लिए सुरक्षा की घेराबंदी क्यों हो रही?

क्या आत्मा की अमरता पर तुम्हें खुद भी संदेह है?

या फिर मोक्ष के मार्ग पर भी स्पेशल एक्सप्रेस है?

 

हे बाबा!

तुम्हारे प्रवचन तो स्वर्ग तक पहुँचते हैं,

पर तुम्हारे काफिले…

तोप-तमंचों की ज़मीन पर चलते हैं।

धर्म अगर निर्भयता है,

तो तुम भय के किस पंथ पर हो?

– डॉo सत्यवान सौरभ, 333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा

(सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045, मोबाइल :9466526148

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