एक था पाकिस्तान,
बस ये सुनने, कहने तक जीवित रखना, ईश्वर,
कि सिंदूर की सौगंध,
जीवन सार्थक हो जाएगा।
उन हाथों में बसी चूड़ियों की खनक,
जो सरहदों पर लहराते तिरंगे को देख
अभिमान से भर जाती हैं,
उन आँखों की रोशनी,
जो अपनों की सलामती के इंतजार में
हर शाम दीये जलाती हैं।
उस आंचल की पवित्रता,
जिसमें बसा है हर सिपाही का हौसला,
उस मांग की लाली,
जो वतन की माटी में
अपने प्रेम का अक्स देखती है।
सजदे में झुके वो सिर,
जो हर बार सलामतियों की दुआएं मांगते हैं,
उन कदमों का नशा,
जो तिरंगे के नीचे सरहदें लांघ जाते हैं।
बस यही अरमान है,
कि वो ‘एक था पाकिस्तान’
सिर्फ़ इतिहास की किताबों में मिले,
सिंदूर की सौगंध,
तब हर सांस का मोल चुकाया जाएगा।
— डॉ सत्यवान सौरभ, उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045