तुम्हे दर्द अपना दिखाते भी कैसे?
दिया गम जो तूने जताते भी कैसे?
कहाँ मिल रहे अब सँकू के निवाले,
जिये आदमी अब अकेले भी कैसे।
वो समझे मुझे आज कितना गलत भी,
जो गुजरी है दिल पे बताते भी कैसे।
कहाँ दूर दिखते ये यादो के साये,
मिला प्यार अब भूल पाते भी कैसे।
सहे जा रहे थे वो बाते पुरानी,
लगी चोट दिल पे दिखाये भी कैसे।
न समझे वो जज्बात दिल के हमारे,
कोई जख्म दिल का दिखाते भी कैसे।
खुशी से बितायी *ऋतु ने जिंदगी भी,
कही ओर ये कदम बढ़ते भी कैसे?
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़