ढूंढ
रही हैं निगाहें,
जिंदगी की तमाम खुशियाँ !
हैं उदास सूनी-सूनी ये अँखियाँ….,
लगता बंजर हो चुकी, मन बगिया !!1!!
धुंध
अँधेरे में खोजते,
भूख, भोजन तलाश रही !
मिल जाएं टुकड़े सूखी रोटी के …,
इसी आस में भटक रहे, गली-गली !!2!!
बुत
बनी देह आँखें,
कहीं सपनों में खोईं !
बीते जाए बचपन जवानी बस्ती में….,
दबाये सीने में आतिश, नयना रोईं !!3!!
– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान