प्रेम-प्रेम जब तक रहा, घर था सुखमय धाम।
दस्तक धन की जो हुई, रिश्ते हुए हराम॥
रिश्ते जब तक भाव में, तब तक थे अनमोल।
खाते-बहियाँ क्या खुली, सबने बदले रोल॥
रिश्ते सारे तौलकर, ऐसा लिखा हिसाब।
घर के आँगन में बचे, बस कागज़ के ख्वाब॥
माटी थे जब तक रहे, तब तक रिश्ते खास।
सोना-चाँदी क्या मिली, बिखर गया विश्वास॥
दौलत में जो बँट गए, बँट गया परिवार।
नेह गया जो बीच से, रहती फिर तकरार॥
नेह बसा था जिस जगह, अब है सिर्फ़ विवाद।
कोना-कोना कर रहा, घर में आज फसाद॥
धन की खातिर टूटते, अब रिश्ते नायाब।
घर के आँगन में बचे, बस काग़ज़ के ख्वाब॥
घर के सारे लोग थे, करते प्रेम अपार।
जायदाद के नाम पर, दिखा नया अवतार॥
जब तक खाली बैठता, भाई माने बात।
धन मिलते ही पूछता, “तेरी क्या औक़ात?”॥
रिश्ते होते प्रेम से, मत कर इनमें मोल।
धन-दौलत तो मिट चले, नेह रहा अनमोल॥
– डॉo सत्यवान सौरभ, 333, परी वाटिका, कौशल्या भवन,
बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045,