बात कविता की
अब मत पूछ मेरे यार !
वह है सम्पूर्ण जीवन व्यापार
जिसने सुनी नहीं, पढ़ी नहीं
लिखी नहीं कोई भी कविता
समझो बही ही नहीं उसके
जीवन में रस की कोई धार
सुखट्टू …है.. निखट्टू ..है
वह केवल…. जीता… है,
क्योकि बस जीना है उसे
मरना वह जानता ही नहीं
और जो मरना नहीं जनता,
वह जीना क्या खाक जानेगा?
सच है यह भी
यह जीवन तो नहीं कविता
जीवन तो है क्षणभर का
कविता मगर नहीं क्षणिका
जी ले जीवन जो क्षण भर ही
जीवन उसकी समझो कविता
कविता तो भाव की सरिता है
जो स्रोत से फूट कर बहती है
जिसमे शब्द ध्वनि उछलती है
कूदती है, फुदकती है, डूबती है
तैरती है फूटती है पुनः पुनः
उगती बनती और रंग बदलती है
कविता –
शब्दों में ही नहीं बहती
संकेतों में ही नहीं झरती
बादलों में ही नहीं कड़कती
मेघों से ही नहीं बरसती
भाव- स्वभाव में भी बहती
जीवन में हर रंग घोलती
कविता, अश्रु जल से यदि
मित्रता के पाँव पखारती है
मित्रभाव शिखर तक पहुचती
तो नयनों की धार में
इस धरा को डुबोती भी है
अन्त नहीं इस कविता की
ऊंचाई और गहराई का।
कविता –
संकेत प्रतीकों में भी बहती है
झरना प्रपात सा उछलती कूदती
और सबसे प्यारी कविता तो वह
जो प्रेषक और संग्राहक के बीच
संकेत और मौन में ही बहती है.
संकेतात्मक ही है जीवन की सौगात
क्या सुना नहीं है? क्या पता नहीं है ?
‘भरे भवन में करत हैं नैनन ही सो बात’.
कविता –
तन का कोई विकार नहीं,
मानसिक तरंगों का आकार है.
ध्वनि ऊर्जा से भाव ऊर्जा तक
आसानी से पहुंचती है और
प्रबलता से अपनी बात कहती है।
कविता है वीरांगना
चंडी रणचंडी जो जगाती है –
जोश शौर्य साहस सत्साहस.
शत्रु दमन तो सरल है,
शस्त्र भी कर सकता है यह.
परन्तु कविता शत्रुता
और दुश्मनी मिटाती है.
शत्रु को भी मित्र बनाती है.
कविता सिखाती है जीने की
कला, और मरने का ढंग।
कविता –
केवल कागजों डायरियों और
कनवास पर ही नहीं लिखी जाती.
यह पूरी प्रकृति एक काव्य है.
आकाश धरती चाँद सितारे
उपवन खिलते फूल ये सारे
इन्द्र धनुष पतझड़ बसंत
शीत ग्रीष्म ये रूप अनंत.
ये एक-एक सर्ग, अध्याय हैं
इस प्रकृति रूपी महाकाव्य के।
कविता –
लय राग और छंद की भूखी नहीं.
इसलिए प्रत्येक संवेदी व्यक्ति
एक मन पसंद कविता गुनगुनाता है.
कुशल गायक भले संतुष्ट न कर सके .
लेकिन स्व-गायन संतुष्ट कर जाता है.
अपनी उलझनों का समाधान
इस कविता में ही पा जाता है।।
– डॉ॰ जयप्रकाश तिवारी, बलिया, उत्तर प्रदेश