neerajtimes.com – वीरता वह भाव है जो कि किसी अन्दर जन्मजात होता है और किसी के अन्दर देश प्रेम की बातें सुनकर या कोई वीरतापूर्ण दृश्य देखकर या परिस्थितिजन्य घटनाओं के कारण उत्पन्न होता है और इस भाव से प्रेरित व्यक्ति या समूह कुछ ऐसा कर गुजरता है कि वह आने वाली पीढ़ी के लिए एक उदहारण बन जाता है । लोग उस व्यक्ति के कार्यों से प्रेरणा लेते हैं और उसको अपना आदर्श मानने लगते है । 13 जनवरी 1978 को एक ऐसे ही योद्धा का जन्म हुआ और जिन्होंने अपनी वीरता से वह मुकाम हासिल किया जो अपने आप में एक इतिहास है ।
21 मार्च 2009 को मेजर मोहित शर्मा को उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा सेक्टर के हफरुदा के घने जंगल में कुछ आतंकवादियों की मौजूदगी की सूचना मिली। उन्होंने आतंकवादियों से निपटने के लिए सावधानीपूर्वक योजना बनाई और अपने साथी कमांडो के साथ उन्हें ट्रैक करने लगे। सेना द्वारा आतंकवादियों से निपटने के लिए चलाए जा रहे इस ऑपरेशन में वह ब्रावो असॉल्ट टीम का नेतृत्व कर रहे थे। उनका दल आगे बढ़ रहा था तभी उन्होंने कुछ संदिग्ध हरकत देखी और अपने स्काउट्स को सतर्क किया लेकिन आतंकवादियों ने तीन दिशाओं से अंधाधुंध फायरिंग करना शुरू कर दिया । आतंकवादियों द्वारा की जा रही इस भारी गोलीबारी में चार कमांडो घायल हो गए। मेजर मोहित शर्मा, अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की परवाह न करते हुए, रेंगते हुए आगे बढ़े और अपने दो घायल साथियों को फायरिंग के बीच से सुरक्षित निकाल लिया। गोलाबारी की चिंता न करते हुए वह आतंकवादियों पर टूट पड़े और हैंड ग्रेनेड से प्रहार करने लगे । हैंड ग्रेनेड के प्रहार से दो आतंकवादी ढेर हो गए । इसी बीच उनके सीने में एक गोली आ लगी और वह गंभीर रूप से घायल हो गए। घायल होने के बावजूद वह अपने कमांडो को निर्देश देते रहे।
अपने साथियों के लिए आगामी खतरे को भांपते हुए उन्होंने आमने – सामने की लड़ाई करने का निश्चय किया और दो आतंकवादियों को मार गिराया । आखिरी सांस तक लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हो गये। मेजर मोहित शर्मा ने इस कार्यवाही में विशिष्ट वीरता, प्रेरक नेतृत्व और अदम्य साहस का परिचय दिया । उनकी विशिष्ट वीरता, साहस और प्रेरक नेतृत्व के लिए सरकार ने उन्हें 21 मार्च 2009 को शांतिकाल के सबसे बड़े सम्मान “अशोक चक्र” से सम्मानित किया।
मेजर मोहित शर्मा की वीरता और बलिदान की याद में जनपद गाजियाबाद के करण गेट चौक से राजेन्द्र नगर मेट्रो स्टेशन को जाने वाले मार्ग का नामकरण तथा राजेन्द्र नगर मेट्रो स्टेशन का नामकरण किया गया है। करण गेट चौक पर मेजर मोहित शर्मा की भव्य प्रतिमा लगायी गयी है।
मेजर मोहित शर्मा का जन्म 13 जनवरी 1978 को हरियाणा राज्य के रोहतक में श्रीमती सुशीला शर्मा तथा श्री राजेन्द्र प्रसाद शर्मा के यहां हुआ था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा मानव स्थली स्कूल, साउथ एक्सटेंशन, दिल्ली तथा होली एंजेल्स स्कूल, साहिबाबाद से तथा इन्टरमीडिएट की पढ़ाई डी. पी. एस .पब्लिक स्कूल, गाजियाबाद से पूरी की। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए महाराष्ट्र के संत गजानन महाराज कालेज आफ इंजीनियरिंग, सेगांव में प्रवेश लिया लेकिन सेना में जाने की उत्कट इच्छा के कारण पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी का चुनाव किया। 11 दिसम्बर 1999 को उन्हें भारतीय सेना की 5 मद्रास बटालियन में कमीशन मिला ।
मेजर मोहित शर्मा ने 38 राष्ट्रीय राइफल्स में भी सेवा की, जहां उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए उन्हें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ प्रशंसा पत्र प्रदान किया गया । मेजर मोहित ने दिसंबर 2002 में पैरा (विशेष बल) का विकल्प चुना और सफलतापूर्वक प्रोबेशन पूरा करने के बाद जून 2003 में वे एक प्रशिक्षित पैरा कमांडो बन गए। वह 11 दिसंबर 2005 को मेजर बने , मार्च 2004 में उनकी बहादुरी के लिए उन्हें सेना मेडल से सम्मानित किया गया। इसके पश्चात वह बेलगाम में प्रशिक्षक के रूप में तैनात हुए , जहां उन्होंने दो साल तक सैनिकों को पैरा कमांडो का प्रशिक्षण दिया ।
मेजर मोहित शर्मा का परिवार गाजियाबाद में रहता है । उनके परिवार में उनके माता पिता और उनके भाई मधु शर्मा हैं । उनका विवाह 2003 में मेजर रिशिमा शर्मा से हुआ था । मेजर शर्मा के वीरगति के पश्चात वह परिवार से अलग रहने लगीं । इसी बात को लेकर मेजर मोहित शर्मा के माता पिता ने भारतीय सेना के सामने निकटतम सम्बन्धी (NOK) तथा WILL (इच्छा) के नियमों तथा वीरता पुरस्कार ग्रहण करते समय पत्नी के साथ माता पिता का भी साथ होना जैसे बदलाव को लेकर अपनी बात रखी । एक लम्बी लड़ाई लड़ने के बाद उनको आंशिक सफलता हासिल हुई और अब सेना ने अपनी परंपरा में परिवर्तन कर दिया है । किसी सैनिक के मरणोपरांत वीरता पुरस्कार ग्रहण करते समय अब पत्नी के साथ माता या पिता को बुलाया जाने लगा है ।
सरकार से इनके परिजनों का कहना है कि निकटतम सम्बन्धी (NOK) तथा इच्छा (WILL) के नियमों में बदलाव समय की मांग है । जब एक विवाहित बेटा वीरगति को प्राप्त होता है तो निकटतम संबंधी के कालम तथा सेवा के दौरान विल के फार्म में शत प्रतिशत पत्नी का नाम होता है इसलिए सेना की ओर से मिलने वाले सभी देय पत्नी को दिए जाते है । जिन माता पिता ने उस बेटे को पाल पोषकर बड़ा किया उनको कुछ नहीं मिलता । कई मामलों में यह देखा गया है कि किसी सैनिक के वीरगति प्राप्त होने के बाद महिला घर छोड़कर चली जाती है ऐसी स्थिति में माता पिता का जीवन यापन मुश्किल हो जाता है और यह स्थिति तब और भयावह हो जाती है जब एक ही बेटा होता है । मानवीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए सेना और सरकार को इन नियमों में शीघ्र बदलाव करना चाहिए, और माता पिता को भी मिलने वाली राशि में एक सम्मानजनक भाग मिलना चाहिए ताकि सभी सम्मान जनक जीवन जी सकें। – हरी राम यादव, सूबेदार मेजर (आनरेरी), अयोध्या, उत्तर प्रदेश