आत्म रक्षण के लिए अब, मत किसी से याचना कर ।
हार का भय त्याग दे यह , आत्मजय की कामना कर ।।
भीड़ है कुछ सिर फिरों की, आ रही है ओर तेरे ।
भारती पर तंज़ कसती,केतु पर आंखें तरेरे ।
बांध ले सर पर कफ़न अब,मोड़ दे रुख आंधियों का ,
हो समय प्रतिकूल बेशक, काल का भी सामना कर ।
आत्म रक्षण के लिए अब, मत किसी की याचना कर ।।1
देख ले दुश्मन पड़ोसी , के उड़े संकल्प सारे ।
भीख का लेकर कटोरा ,फिर रहा है चीन द्वारे ।
भारती के कर्णधारों पर, हमें पूरा भारौसा ,
देश का गौरव बचाने ,के लिए आराधना कर ।
आत्म रक्षण के लिए अब ,मत किसी से याचना कर ।।2
आग की लपटें उठें तब ,कौन किसका साथ देता ।
बाढ़ में डूबे हुए को , कौन अपना हाथ देता ।
चीर का धारा नदी की ,लिख नई गाथा सदी की ,
हाथ में लेकर तिरंगा ,भारती की साधना कर ।
आत्म रक्षण के लिए अब, मत किसी से याचना कर ।।3
घोर संकट के समय में, आत्म बल ने ही बचाया ।
धैर्य जो धारण किया था , वो हमेशा काम आया ।
संत ऋषियों की धरा ये ,शांति का पैगाम देती ,
शक्ति बाजू में रहे “हलधर “यही तू प्रार्थना कर ।
आत्म रक्षण के लिए अब,मत किसी से याचना कर ।।4
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून