मनोरंजन

चिल्लर – सुनील गुप्ता

(1) रेज़गारी

चिल्लर, कहाँ चलती है जनाब…,

पड़ी-पड़ी जेब में, खनकती रहती है साहब  !!

 

(2) बेरोजगारी

बढ़ रही है नित यहाँ पे….,

पर कहाँ कम हो रही है, चिल्लर आबादी देश में !!

 

(3) होशियारी

बहुत दिखलायी हमने यहाँ पर…,

पर चिल्लर की तरह वे भी, कहीं पे बिखर गयी !!

 

(4) बेकारी

या कहलो, चाहें इसे हमारी मज़बूरी….,

बख्शीश में मिली, चिल्लर लिए घूमा करते हैं !!

 

(5) ख़रीददारी

में बहुत ख़बरदारी थी, कभी बरती…..,

पर क्या करें इन चिल्लर रेज़गारी का, अब यहाँ पे !!

– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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