मुझसे अनजान था वो कुछ ऐसा नहीं,
जाने क्यों बस मेरी बात समझा नहीं।
हैं बहुत खूबसूरत यहां लोग और भी,
फिर भी तुझ सा ज़माने में देखा नहीं।
जो भी है कोई कीमत नहीं उसकी कुछ,
एक तेरे सिवा मुझ पे क्या क्या नहीं।
पत्थरों में खुदा इनका इनको दिखा,
बे वजह यूं कोई सर झुकाता नहीं।
जाने जां वो मुझे उसको कहता हूं मैं,
अब से पहले था, था कोई रिश्ता नहीं।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़