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छंद – जसवीर सिंह हलधर

यदि मूंद लेवे नैन, दिन में भी होवे रैन ,

धरा पे मिले न चैन , ऐसी या की चाल है ।

 

मुट्ठियों में तीनों काल ,पैरों के नीचे पाताल ,

गले में है सर्प माल, नाम महाकाल है ।।

 

डार देवे दृष्टि जहां , फूले फले सृष्टि वहां ,

दृष्टि यदि फेर ले तो , काल का कपाल है ।

 

जीवन इसी से पावें, लौट के इसी पे आंवे,

सांस गिनती के लावें ,यही लय ताल है ।।

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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