रब ने तुमसा अब बनाया ही नही,
यार तुमसा ओर भाया ही नही।
माँ.के जैसा आज पाया ही नही,
तुम से बिछुड़ी चैन आया ही नही।
चाह मे तेरी अजी हम खो गये,
तुमसे बढ़कर कोई भाया ही नही।
छोड़कर हमको गये परदेश मे,
लौटकर वो पास आया ही नही।
जान भी दूंगी अगर मांगेगा तू ,
तूने मुझको आजमाया ही नही।
इश्क को तेरे खुदा समझा बड़ा,
प्यार तेरे सा जमाने मे पाया ही नही।
गम जो तूने अब हमे इतने दिये,
बिन तुम्हारे मुस्कुराया ही नही।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़