मनोरंजन

दोहे – डॉ. सत्यवान सौरभ

नई सदी में आ रहा, ये कैसा बदलाव।

संगी-साथी दे रहे, दिल को गहरे घाव।।

 

जर्जर कश्ती हो गई, अंधे खेवनहार।

खतरे में ‘सौरभ’ दिखे, जाना सागर पार।।

 

हत्या-चोरी लूट से, कांपे रोज समाज।

रक्त रंगे अखबार हम, देख रहे हैं आज।।

 

योगी भोगी हो गए, संत चले बाजार।

अबलाएं मठ लोक से, रह-रह करे पुकार।।

 

दफ्तर,थाने, कोर्ट सब, देते उनका साथ।

नियम-कायदे भूलकर, गर्म करे जो हाथ।।

 

मंच हुए साहित्य के, गठजोड़ी सरकार।

सभी बाँटकर ले रहे, पुरस्कार हर बार।।

 

कौन पूछता योग्यता, तिकड़म है आधार।

कौवे मोती चुन रहे, हंस हुये बेकार।।

 

कदम-कदम पर हैं खड़े, लपलप करे सियार।

जाये तो जाये कहाँ, हर बेटी लाचार।।

 

बची कहाँ है आजकल, लाज-धर्म की डोर।

पल-पल लुटती बेटियां, कैसा कलयुग घोर।।

 

राम राज के नाम पर, कैसे हुए सुधार।

घर-घर दुःशासन खड़े, रावण है हर द्वार।।

✍ डॉ. सत्यवान सौरभ, 333, परी वाटिका,

कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा

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