बोझ जीवन का अपने उठाते रहो,
ख्वाब पूरे करो और कराते रहो।
तुमकों खुशियां मिले गुनगुनाते रहो,
है दुआ उमर भर मुस्कुराते रहो।
गर लिखी है जो ग़ज़ले बड़े प्यार से,
तुम उसे फिर तरन्नुम मे गाते रहो।
जिसको चाहा सदा उसकी पूजा करो,
एक दूजे को मिलकर मनाते रहो।
दर्द बाँटो सदा दीन दुखियों के अब,
हर किसी को गले तुम लगाते रहो।
ज्ञान बाँटो सदा तुम भला भी करो,
कुछ न कुछ आप सबको सिखाते रहो।
फायदा हो सभी को नीयत ये रखो,
दीप तूफान में भी जलाते रहो।
– रीता गुलाटी. ऋतंभरा, चंडीगढ़