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दोहे – मधु शुक्ला

हम सबको लगता बहुत, ही प्यारा उपहार।

विमल प्रेम अभिव्यक्ति की, है धारा उपहार।

 

अकस्मात जब आपका , प्रिय लाये उपहार।

आनन्दित दृग हों उन्हें, अति भाये उपहार।।

 

निर्मल लेकर प्रेम जब , आता है उपहार।

अपनेपन का भान दे, जाता  है  उपहार।।

 

होनहार  संतान  को , जग  माने  उपहार।

भाग्यवान का ही हृदय,यह जाने उपहार।।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

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