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वेदने धन्य है – अनुराधा पाण्डेय

वेदना ही सहचरी है

पीर ही श्रृंगार मेरा।

आज परिचय कुछ न मेरा

पीर केवल पास मेरे।

चंद बस हैं अश्रु मणिका

जो बने हैं खास मेरे।

अश्रु भी अब जम गए हैं-

नैन कारागार मेरा।

पीर ही श्रृंगार मेरा….

 

छल लिए बहु बार जग ने

मित्र बनकर शूल छींटे।

म्लान अन्तस में गरल ले,

बोल देते मात्र मीठे ।

धैर्य मिथ्या दे मुझे अब-

कर रहे उद्धार मेरा

पीर ही श्रृंगार मेरा..।

 

अब मृषा को नैन मेरे ,

दूर से पहचानते हैं।

मधु लपेटे छद्म स्वर को ,

अब न सच्चे मानते हैं।

बिद्ध शर से कर चुका जग

शुद्ध उर शत बार मेरा ।

पीर ही श्रृंगार मेरा।

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली

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