मनोरंजन

नज़्म – जसवीर सिंह हलधर

आतंक जिसमें पल रहा गज़वा रिवाज़ से ।

बू आ रही बारूद की जिसके मिज़ाज से ।।

 

वीरान सारा मुल्क है आटा न दाल है ।

बरवाद पाकिस्तान के अंदर बवाल है ।

बचने लगे हैं शेख भी उस बदलिहाज़ से ।।

बू आ रही बारूद की जिसके मिज़ाज से ।।1

 

मइशत हुई तबाह क्या संभलेगी भीख से ।

अब बौखला गया है वो अरबों की सीख से ।

नाराज़ हैं अफ़गान भी इस ना -हिफ़ाज़ से ।।

बू आ रही बारूद की जिसके मिज़ाज से ।।2

 

इस पाक को आबाद क्यों कोई न कर सका ।

ढाका इसी की राह पे गिरने लगा टका ।

शहवाज़ प्रश्न पूछता भाई नवाज़ से ।।

बू आ रही बारूद की जिसके मिज़ाज से ।।3

 

खुशहाल आज भारती आबाद हो रही ।

मेरे वतन की  शान तो दिलशाद हो रही ।

भारत हुआ है दूर कुछ मज़हब हिज़ाज से ।।

बू आ रही बारूद की जिसके मिज़ाज से ।।4

 

परमाणु में चली गई दौलत वो जेब की ।

“हलधर” कथा बखान की उस दिलफ़रेब की ।

नापाक आज चिड़ रहा जलवे फ़राज़ से ।।

बू आ रही बारूद की जिसके मिज़ाज से ।।5

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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