आतंक जिसमें पल रहा गज़वा रिवाज़ से ।
बू आ रही बारूद की जिसके मिज़ाज से ।।
वीरान सारा मुल्क है आटा न दाल है ।
बरवाद पाकिस्तान के अंदर बवाल है ।
बचने लगे हैं शेख भी उस बदलिहाज़ से ।।
बू आ रही बारूद की जिसके मिज़ाज से ।।1
मइशत हुई तबाह क्या संभलेगी भीख से ।
अब बौखला गया है वो अरबों की सीख से ।
नाराज़ हैं अफ़गान भी इस ना -हिफ़ाज़ से ।।
बू आ रही बारूद की जिसके मिज़ाज से ।।2
इस पाक को आबाद क्यों कोई न कर सका ।
ढाका इसी की राह पे गिरने लगा टका ।
शहवाज़ प्रश्न पूछता भाई नवाज़ से ।।
बू आ रही बारूद की जिसके मिज़ाज से ।।3
खुशहाल आज भारती आबाद हो रही ।
मेरे वतन की शान तो दिलशाद हो रही ।
भारत हुआ है दूर कुछ मज़हब हिज़ाज से ।।
बू आ रही बारूद की जिसके मिज़ाज से ।।4
परमाणु में चली गई दौलत वो जेब की ।
“हलधर” कथा बखान की उस दिलफ़रेब की ।
नापाक आज चिड़ रहा जलवे फ़राज़ से ।।
बू आ रही बारूद की जिसके मिज़ाज से ।।5
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून