हुआ इश्क उनसे छुपाते भी कैसे,
खुदा ने मिलाया है छोड़े भी कैसे।
बिना आपके हम जियेंगे भी कैसे,
लगी आग ऐसी बुझाते भी कैसे।
हुए आज प्यासे परिंदे भी सारे,
सभी को खिलाये ये दाने भी कैसे।
मुहब्बत भी हमने तुम्ही से बहुत की,
अधर मे ये हम छोड़े भी कैसे।
लगे खूबसूरत सजन तुम हमारे,
हम अपनी नजर से बचाते भी कैसे।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़