कैसे भूले बोस को, ‘सौरभ’ हिन्दुस्तान।
कतरा-कतरा खून का, उनका है कुर्बान॥
बच्चा-बच्चा बोस का, ऐसा हुआ मुरीद।
शामिल होकर फ़ौज में, होने चला शहीद॥
भारत के उस बोस की, गाथा बड़ी महान।
अपनी मिट्टी के लिए, छोड़ा सकल जहान॥
कब दुश्मन से थे झुके, जीए बोस प्रचंड।
नहीं गुलामी को सहा, सहा न कोई दंड॥
भारत उनकी आन था, भारत पहला धर्म।
भारत ही था बोस का, सबसे पहला कर्म॥
एक सभी से बात ये, पूछे आज सुभाष।
‘सौरभ’ क्यों है दिख रही, भारत मात उदास॥
भारत माँ की कोख पर, होता अब अफ़सोस।
कायर, दगाबाज जने, जने नहीं क्यों बोस॥
तिथियाँ बदले और पल, बदलेंगे सब ढंग।
खो जायेगा एक दिन, ‘सौरभ’ तन का रंग॥
-प्रियंका सौरभ, 333, परी वाटिका,
कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा