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चलें संगत सुधारते – सुनील गुप्ता

( 1 )” चलें “, चलें

अपनी संगत सुधारते,

बदलते ये जीवन चलेगा !

और जब सारा परिवेश बदलेगा….,

तो कमल की तरह, जीवन खिल उठेगा !!

 

( 2 )” संगत “, संगत

से चले बदलते,

एक बूँद मोती में  !

और पाकर अमूल्य धन गौहर…,

नित बढ़ती चलें, प्रेम खुशियाँ जीवन में !!

 

( 3 )” सुधारते “, सुधारते

चलें ये जीवन,

संतजनों की आशीष पाएं !

और महकाए चलें जीवन बगिया को….,

अपने चहुँओर, मधु मकरंद आनंद लुटाएं !!

– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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