मनोरंजन

ग़ज़ल (हिंदी) – जसवीर सिंह हलधर

भोर की पहली किरन का क्या करें ।

सांझ की सहमी थकन का क्या करें ।

 

रोशनी के काफ़िले भयभीत हैं ,

आग में लिपटी तपन का क्या करें ।

 

सूर्य के पथ पर तिमिर का राज है ,

लक्ष्य से भटके विजन का क्या करें ।

 

भार मधुरा मंजरी की गंध में ,

टहनियां इसके वजन क्या करें ।

 

एक अर्सा हो गया बिछुड़े हुए ,

हृदय में विरही चुभन का क्या करें ।

 

छंद तो घायल पड़े साहित्य में ,

मुक्त कविता के चलन का क्या करें ।

 

हर तरफ फैला कुहासा बैंगनी ,

रंग दोषों के नयन का क्या करें ।

 

शुद्ध कविता रो रही है मंच पर ,

चोर कवियों के चयन का क्या करें ।

 

मर चुकी संवेदनाएं काव्य में ,

कथ्य के ओढ़े कफ़न का क्या करें ।

 

शीश चढ़कर बोलते हैं शे’र ये ,

क्रुद्ध ‘हलधर’ हैं वचन का क्या करें ।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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