मनोरंजन

उठती ऊँगली और पे – प्रियंका सौरभ

सुन ले थोड़े सच्चे बोल,

मतकर इतनी टाल-मटोल।

 

सोच समझकर छूना आग,

बेमतलब ना ले पंगे मोल।

 

दुनिया सब कुछ जानती,

क्यों पीटता ख़ुद के ढोल।

 

कितने ही तू नारद नचा,

धरती रहनी आख़िर गोल।

 

तन उजला, चरित्र काला,

छोड़ दे प्यारे ढोंगी चोल।

 

दाढ़ी में तिनका चोर के,

बता रहे तेरे ही बोल।

 

तेरी उठती ऊँगली और पे,

कहती पहले ख़ुद को तोल।

 

कब तक यहाँ बदी टिकी,

मत इतरा, न इतना डोल।

 

सत्य सदा ही सत्य रहा,

बाकी खुलती सबकी पोल।

 

प्यार के बदले प्यार मिले,

भाईचारे में बैर ना घोल।

-प्रियंका सौरभ, 333, परी वाटिका, कौशल्या भवन,

बड़वा (सिवानी) भिवानी,  हरियाणा – 127045

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