कुछ आशाएं कुछ उम्मीदें ,हैं मुझको इस नए साल से।
चलूं वक्त के साथ सदा ही,कदम मिलाऊं विकट-काल से।।
अपनों से भरपूर मिलूंगी,सुरभित गुल सी सदा खिलूंगी ।
सत्कर्मों के पथ पर चलकर, दीपशिखा सी मौन जलूंगी ।।
सुख-वैभव झोली में भरकर,बांटूंगी खुशियां ही खुशियां।
रिश्तों की डोरी ना टूटे,घर-आंगन की महके बगिया।।
जल, भोजन, आवास, वसन दीनों तक पहुंचाना होगा।
उदासीन सब मायूसों पर नेह-अमिय बरसाना होगा।।
सक्षम पाखी स्वकौशल से नित ऊंची परवाज भरेंगे।
नए सृजन की गरिमामय परिपाटी का आगाज़ करेंगे।।
दृढ़-संकल्प लिया है मैंने,’समय-चक्र’ के साथ चलूँगी।
सुख-दु:ख के सोपानों पर,संयम से ही कदम रखूंगी।।
जनसेवा के काम करुँगी,मानवता का धर्म निभाकर।
कंटक-पथ को पार करुंगी,बाधाओं से न घबराकर।।
शब्दों के अनुपम प्रकाश से,सुप्त चेतना को जगाऊंगी।
नए वर्ष के मधुर-मधुर पल सबकी झोली में सजाऊंगी।।
– डा. अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली