जिंदगी लाचार है, कौन किसका यार है।
रो रहीं है हर खुशी, मतलबी सब यार है।।
हो गया नाशाद दिल, बेवफाई रूह में।
बोलना वाजिब नहीं, भूल बैठा यार है।।
धूँध की चादर तनीं, कुछ नजर आता नहीं।
हर घड़ी बेचैनियाँ, कौन पूछे यार है।।
ठंढ़ के आगोश में, काँपता है तन बदन।
बेकरारी इस कदर, याद आता यार है।।
राम जाने क्या हुआ, हाल भी पूछें नहीं।
वक्त का मारा हुआ , राह देखें यार है।।
आहटों के आड़ में, ख्याल आ जाता सदा।
दिल मचल के बोलता, लौट आया यार है।।
हो गया बेचैन ‘अनि’, जो गया आता नहीं।
क्या निभायें दोस्ती, दूर बैठा यार है।।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड