मनोरंजन

जनवरी आने वाली है – विनोद निराश

जाते हुए दिसम्बर से मैंने कहा,

काश थोड़ा और रुक जाते,

उसने कहा मैं रुक नहीं सकता,

क्यूँकि अब जनवरी आने वाली है।

 

इस जाते हुए दिसम्बर के साथ,

कितनी यादें अचानक चली आई,

खुद को ये सोच के सम्भाला कि तुम तो आओगे ही,

क्यूँकि अब जनवरी आने वाली है।

 

कही घना कोहरा, कही धुंध,

कही जलते अलाव कही सूरज गुम ,

आलसी, सुसुप्त, बेरुखे दिसम्बर से अब क्या कहे,

क्यूँकि अब जनवरी आने वाली है।

 

एक साल कम होता ज़िंदगी का,

उरतल की दीवारों पर दस्तक देता नववर्ष,

देर तलक बैठे-बैठे तेरा ख्याल आना लाज़िमी,

क्यूँकि अब जनवरी आने वाली है।

 

सर्द मौसम में तेरे हाथ की वो कॉफी,

जाते हुए दिसम्बर के साथ निराश मन को,

आज भी बहुत याद आती है मगर ख़ुशी है,

क्यूँकि अब जनवरी आने वाली है।

– विनोद निराश, देहरादून

Related posts

रे आज़ादी – रश्मि शाक्य

newsadmin

ग़ज़ल – ऋतु गुलाटी

newsadmin

नित पूजन अर्चन कीजिये – कलिका प्रसाद

newsadmin

Leave a Comment