मनोरंजन

ग़ज़ल – शिप्रा सैनी

देखिए जी आजकल तो, हर किसी को हड़बड़ी है ।

भूल कर रिश्ते व नाते, सबको पैसों की पड़ी है।

 

मानिए तो उलझनों की, एक लंबी सी कड़ी है,

एक निपटी ही नहीं है, दूसरी आकर खड़ी है।

 

हम भला कैसे सुनायें, अपना दुखड़ा हर किसी को,

पाते हम तकलीफ़ सबकी, जो कि मुझसे भी बड़ी है।

 

खुद पे इतरायें तो अच्छा, और जायज भी कहें वो,

पर हमारी कामयाबी, उनकी नज़रों में गड़ी है।

 

मानते वह धर्म अपना, या कि नीयत और है कुछ,

मान मानवता को पहले, कह रही बस यह घड़ी है।

 

बच्चियों को रौंदते जो, औरतों पर हाथ डाले,

ऐसे लोगों को कहेंगे, आत्मा उनकी सड़ी है।

–  शिप्रा सैनी मौर्या, जमशेदपुर

Related posts

परिवार – सुनील गुप्ता

newsadmin

स्वर साधिका शारदा सिन्हा के सुमधुर संगीत के हमसफर, सशक्त साथी को अंतिम सलाम (ओंकारेश्वर पांडेय-विभूति फीचर्स)

newsadmin

प्रवीण प्रभाती – कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

newsadmin

Leave a Comment