दशम मास होता है पौष,
ठंड अपनी जमाती धौंस।
भीषण ठंढ से सब है व्याकुल,
हर नर-नारी, बालक, युवा, वृद्ध।
उष्ण कपड़े है सभी पहनते,
ठंड से बचने की कोशिश करते।
उष्ण बिस्तर भी घर में लगाते,
पर ठंढी से राहत नहीं पाते।
कृषक फसलों की निगरानी करते,
भारी ठंढ में खेतों पर रहते।
चारों तरफ लोग अलाव जलाते,
तब ठंढी से है राहत पाते।
पर सजनी को चैन है कहां,
सजना को ढूंढती है यहां वहां।
उष्ण बिस्तर भी कांटे लगते,
सारे कष्ट अकेले सहती।
भारी ठंढ से हालत है खराब,
कैसे वह जलाए आग।
तन मन में तो लगी है आग सी,
भीतर बूझ रही ज्योति प्यार की।
सखियां आकर उसे समझाती,
मीठी-मीठी बातें कहती।
रखना है ध्यान तुझे प्रेम निशानी का,
देना है जन्म इस निशानी को।
ईश्वर पर तुम करो भरोसा,
मुश्किल काम होंगे आसान।
साजन तेरे आएंगे एक दिन,
लौट आएंगे तेरी खुशी के दिन।
सूर्यनारायण हो रहे उतरायण,
शुरू होंगे अब सारे शुभ कर्म।
मकर संक्रांति, पोंगल, लोहड़ी,
इस माह के त्योहार हैं यह सभी।
अलग-अलग नाम से सभी मनाते,
फसलों का त्योहार इसे कहते।
खेतों में गन्ने की मीठी-मीठी से सुगंध,
कल्लुहाड़ी से आती मीठे ताजे गुड़ की गंध।
– मुकेश कुमार दुबे “दुर्लभ”
(शिक्षक सह साहित्यकार), सिवान, बिहार