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नटखट-सी किलकारियाँ – डॉ.सत्यवान सौरभ

पाई-पाई जोड़ता, पिता यहाँ दिन रात।

देता है औलाद को, खुशियों की सौगात॥

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माँ बच्चों की पीर को, समझे अपनी पीर।

सिर्फ इसी के पास है, ऐसी ये तासीर॥

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भाई से छोटे सभी, सोना-मोती-सीप।

दुनिया जब मुँह मोड़ती, होता यही समीपस्थ॥

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बहना मूरत प्यार की, मांगे ये वरदान।

भाई को यश-बल मिले, लोग करें गुणगान॥

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पत्नी से मिलता सदा, फूलों-सा मकरंद।

तन-मन की पीड़ा हरे, रचे प्यार के छंद॥

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सच्चा सुख संतान का, कौन सका है तोल।

नटखट-सी किलकारियाँ, लगती हैं अनमोल॥

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जीजा-साली में रही, बरसों से तकरार।

रहती भरी मिठास से, साली की मनुहार॥

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मन को लगती राजसी, साले से ससुराल।

हाल-चाल सब पूछते, रखते हरदम ख़्याल॥

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सास-ससुर के रूप में, मिलते हैं माँ बाप।

पाकर इनको धन्य है, जीवन अपने आप॥

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जीवन में इक मित्र का, होता नहीं विकल्प।

मंजिल पाने के लिए, देता जो संकल्प॥

– डॉ.सत्यवान सौरभ, उब्बा भवन, आर्यनगर,

हिसार (हरियाणा)-127045

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