झूठे रिश्ते वह सभी, है झूठी सौगंध।
आँसूं तेरे देख जो, कर ले आंखें बंद॥
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रख दे रिश्ते ताक पर, वह कैसे बदलाव।
साजिशकारी जीत से, सही हार ठहराव॥
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धन-दौलत से दूर हो, चुनना वह जागीर।
जिन्दा रिश्ते हों जहाँ, सच की रहे नज़ीर॥
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बस छोटी-सी बात पर, उनका दिखा चरित्र।
रिश्ते-नाते तोड़ कर, हुए शत्रु के मित्र॥
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रिश्ते नाते तोड़कर, ख़ूब रची पहचान।
रहने वाला एक है, इतना बड़ा मकान॥
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रिश्तों के भीतर छुपे, मुश्किल बड़े सवाल।
ना जाने किस मोड़ पर, विक्रम हो बेताल॥
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आये दिन ही टूटती, अब रिश्तों की डोर।
बेटी औरत बाप की, कैसा कलयुग घोर॥
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रिश्ते-नातों का भला, रहे कहाँ फिर ख़्याल।
कामुकता का आँख पर, ले जो पर्दा डाल॥
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रिश्ते अब तो डूबते, छोड़ बीच मँझदार।
कागज़ की कश्ती चले, सोचो कितनी बार॥
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मतलब के रिश्ते कभी, होते नहीं खुद्दार।
दो पल सुलगे कोयले, बनते कब अंगार॥
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रिश्ते जुड़ते हों जहाँ, केवल धन के संग।
उनके मन में प्यार का, कोई रूप न रंग॥
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मंत्र प्यार का फूँकते, दिल में रखते घात।
रिश्ते क्या बेकार है, करना उन से बात॥
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कहाँ मनों में भावना, कहाँ दिलों में प्यार।
रिश्ते ढूँढें फायदे, मानो कारोबार॥
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हाथ मिलाते गैर से, अपनों से बेज़ार।
‘सौरभ’ रिश्ते हो गए, गिरगिट से मक्कार॥
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छोटी-मोटी बात को, कभी न देती तूल।
हर रिश्ते को मानती, बेटी करे न भूल॥
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कोख किराये की हुई, नहीं पिता का नाम।
बिकते रिश्ते अब यहाँ, बिल्कुल सस्ते दाम॥
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भाई-चारा प्रेम हित, रिश्ते हैं बीमार।
दु:ख-सुख की बातें गई, गया मनों से प्यार॥
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सील गए रिश्ते सभी, बिना प्यार की धूप॥
धुंध बैर की छा रही, करती ओझल रूप॥
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सुख की गहरी छाँव में, रिश्ते रहते मौन।
वक्त करे है फैसला, कब किसका है कौन॥
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लेकर पैसे गाँठ में, कहता ख़ुद को धन्य।
सोचो कितने खो दिए, रिश्ते यहाँ अनन्य॥
– डॉo सत्यवान सौरभ, 333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045, मोबाइल :9466526148,01255281381