मनोरंजन

युवा पीढ़ी को हिंसा, नफरत, असहिष्णुता और वासना से अभी बचाना जरूरी – भूपेन्द्र गुप्ता

neerajtimes.com – मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल के छतरपुर जिले के एक छोटे से गांव में जहां पर संस्कृति और संस्कार की पकड़ समाज पर गहन होती है वहां एक छात्र द्वारा अपने ही स्कूल के प्रिंसिपल को गोली मार देने की घटना देश को हिला देने वाली है।भारत के पिछले 100 साल के ज्ञात इतिहास में संभवत: यह पहली घटना है, जहां पर एक छात्र ने अपने प्रिंसिपल को गोली से भून डाला है। इसी समय मध्य प्रदेश के एक दूसरे गांव गरोठ में  दलित परिवार द्वारा किए जा रहे निर्माण  कार्य को रोकने के लिए एक दबंग ने गोली से महिला मजदूर को भून दिया है। एक और घटनाक्रम में स्कूल के सहपाठी चार नाबालिगों ने एक बच्ची से गैंगरेप किया फिर उसे ब्लैकमेल किया और अंततोगत्वा उस बच्ची ने आत्महत्या कर ली।

समाज में इतनी हिंसा, इतनी नफरत, इतनी असहिष्णुता,इतनी वासना कहां से आ रही है? क्या हमारा समाज अपने मूल्यों को बचाने में असफल हो रहा है ? क्या घृणा के दो छोर इतने कठोर हो चुके हैं कि अब शिष्य और गुरु के बीच में भी गोली ही अंतिम उपाय रह गया है ।

समाज के रूप में अगर हम भारत को देखें तो यह गन कल्चर हमने अमेरिका में तो सुना था जहां पर बच्चे स्कूल के अंदर ताबड़तोड़ गोलियां चला देते हैं । यह हमने पाकिस्तान में भी सुना था लेकिन भारत में इस घटना का होना दर्शाता है कि समाज  में  जंग लग रही है और हमारा सिस्टम हमारी मूल्यानुगत परंपराएं इस उन्माद का समाधान खोजने में असमर्थ हैं ।

भारत के गांवों का हम अध्ययन करें तो पाते हैं कि विगत 10 वर्षों में गली कूचों और देहातों में जिन गरीब बस्तियों में  ना तो नियमित रोजगार  है न ही अतिरिक्त आमदनी , वहां भी आधा गांव नशे में डूबा है। नशीले पदार्थों का सेवन,धर्म,और जाति का नशा और इसकी फंडिंग राज्य को तो असफल कर ही रही है ,समाज के रूप में भी हमें असफल कर रही है।

हम 10 वर्ष पहले यह दम भरने वाले राष्ट्र थे कि भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। हमारी 50 फीसदी आबादी युवा है और हम दुनिया को नेतृत्व देने की क्षमता रखते हैं ।

हमारे इन दावों को तीन तरह से दुनिया के शैतानों ने तोड़ दिया है।

एक- इन नौजवानों के हाथ में काम मत जाने दो  उनकी जवानी नौकरी रोजगार खोजते खोजते ही समाप्त हो  जाए।

दो- शिक्षा पर हमला करो ताकि योग्यता और युवावस्था का सामंजस्य ना रहे ।

तीन-  इस बेरोजगार नौजवान को नशे के दलदल में उतार दो जहां पर वह अपनी दुनिया से अनुपस्थित हो  जाए।

क्या भारत इस खतरे को भांप रहा है कि जिस जवानी पर वह दस साल पहले नाज कर रहा था आज उसके पांव लड़खड़ा रहे हैं। एक अध्धयन में यह बात सामने आई है कि उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं में 40 फीसदी भी रोजगार के हिसाब से योग्य नहीं हैं। एम्प्लायबिलिटी का यह संकट दिखाई पड़ना चाहिये।

इसके पहले चीन भी स्मार्ट सिटी के चक्कर में फंसकर बहुत कुछ गंवा चुका है। वे शहर अब घोस्ट सिटी(भुतहा शहर) के रूप में जाने जाते हैं। चीन ने अपने आपको मास प्रोडक्शन और मेनपावर के नियोजन से  बचा लिया है । हमें भी समय रहते यह करना होगा।

भारत की युवा पीढ़ी सामर्थ्यवान है। क्या एक राष्ट्र के रूप में इस मानव संसाधन(ऊर्जा) को हम नियमित कर पा रहे हैं? क्या हम उसे क्षमतावान संसाधन के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत कर पा रहे हैं।

शायद नहीं..।आज आवश्यकता है कि सरकारें देश को इस तिहरे नागपाश से बचाने के लिये राष्ट्रीय नीति का निर्माण करें। यह नीति निम्न उपायों पर केंद्रित होकर मिशन मोड में क्रियान्वित हों-

नौजवान बेरोजगारों को समयबद्ध तरीके से रोजगार से जोड़कर देश की उत्पादकता बढाने के उपाय।

देश में लाखों-करोड़ मूल्य के नशे के प्रवेश से समाज के विघटन को रोकने के उपाय।

नशे के स्रोत और उसकी फंडिंग के मूल पर आक्रमण के उपाय।

शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के उपाय ।

नियोजनीयता कौशल के विकास को बढ़ाना।

अपराध ,अराजकता ,धर्म और जाति का उन्माद तथा कार्यकुशलता का अभाव इतने बड़े देश की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता। चमचमाती हुई सड़कें तो कल भी बन सकती हैं लेकिन एक मुर्दा होती पीढ़ी को आज और इसी वक्त बचाना जरूरी है।(विभूति फीचर्स)

Related posts

चुनावी दांव – कवि संगम त्रिपाठी

newsadmin

महेन्द्र – सुनील गुप्ता

newsadmin

कहकहे जो सुनाते रहे – नीलिमा मिश्रा

newsadmin

Leave a Comment