मनोरंजन

एक था रवीश – अनुराधा पांडेय

डिगे रहे तुम गर्व से, किया नहीं व्यापार।

धन्य धन्य हठधर्मिता,झुका दिये सरकार।।

२-

माना शातिर तुम मियां,हिला दिये सरकार।

भक्त भले ही कर रहे, बढचढ़ कर प्रतिकार।।

३-

सच हो उत्पाती बहुत, खबरें देते झूठ।

तभी भक्त के साथ में, गयी “केसरी” रूठ।।😀

४-

माँ बहन से रचित खचित गाली खाते रोज।

मगर बड़े निर्लज्ज तुम,फिर भी देते नोज।।

५-

पानी में रहकर मियां, किये मगर से बैर।

जहर डाल रचते खबर, खुदा करें अब खैर।।

६-

तुम भी अकड़ू थे बहुत, बेचा नहीं इमान।

अहिर बहिर के संग तुम,बने तुगलिया खान।।

७-

चैनल पर तुम बैठकर, रखते मन की बात।

विधिवत चौकीदार पर, मिथ्या करते घात।।

– अनुराधा पांडेय, द्वारिका , दिल्ली

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