प्यार भरी है माँ की बातें।
सुन लेती माँ सबकी बातें।। मतला
करते है नासमझी बातें
बोलें है क्यों खारी बातें।
यार जमाना कैसा आया,
लोग करे जहरीली बातें।
कोन सुनेगा दर्द हमारा,
जग की होती कड़वी बातें।
हर घर मे होती अब रहती,
कुछ सुलझी कुछ उलझी बातें।
उड गये छोड परिन्दे हमको,
याद दिलाते भूली बातें।
साथ लगे अब सपनो जैसा,
करता वो सपनीली बातें।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़