श्वासों का, ठहर जाना
शरीर का ठंडा, पड़ जाना ,
आँखों का खुला रह जाना…..,
क्या यही है, ‘ मृत्यु ‘, की पहचान ?
शिव , से ‘ शव ‘, हो जाना
हाथ-पैरों का, अकड़ जाना ,
शांत शरीर का निस्तेज पड़े रहना….,
क्या यही है, ‘ मृत्यु ‘, के लक्षण ?
चेतनता का, अभाव मात्र
स्पंदनता में, जड़ता का भाव ,
सभी इन्द्रियों का पूर्ण अभाव….,
क्या यही है, ‘ मृत्यु ‘, का प्रमाण ?
शरीर से, प्राण निकलना
पंच भूतों में जाके, मिल जाना ,
एक गहरी नींद में, सोए चले जाना….,
क्या यही है, ‘ मृत्यु ‘, का अंतिम सत्य ?
नहीं नहीं नहीं है ये ‘ मृत्यु ‘, नहीं
ये ‘ मृत्य ‘, नहीं, कदापि नहीं !
ये ‘ मृत्यु ‘, तो मात्र शरीर छूटना..,
पांच प्राणों का संपूर्ण निर्वासन होना !!
मृत्यु , तो घटित हो रही है
यहाँ पर हरेक पल, हर क्षण !
जन्म से निरंतर, अविरल निर्बाध …,
बीतते समय के साथ, प्रतिपल- प्रतिक्षण !!
मृत्यु , तो है ‘ जीवन ‘, का सच
बस समय का है, कुछ हेर-फेर !
बचपन से जवानी और बुढ़ापा ……,
और बुढ़ापे का अवसान, है पुनर्जन्म का आगाज़ !!
हम नित्य ‘ मृत्यु ‘, को हो रहे हैं प्राप्त
पता ही नहीं, कब कैसे हो रहा यहाँ पे !
फ़िर भी चले जा रहे, ढ़ोते-लादे……,
अपने ही शरीर को, कांधों पे अपने !!
मृत्यु , तो मात्र है एक घटना
आज घटित हो या कल हो हमारे साथ !
पर, सच में हम मर रहे प्रतिपल-क्षण …..,
अपने कुत्सित विचारों, सोच के संग-साथ !!
चलें विधेयात्मक विचारों की बनाए श्रृंखलाएं
और प्राणों को देते, नव ऊर्जा शक्ति !
नकारात्मक सोच परिणामों का फल…,
है मृत्यु , जिसे हम हर बार यहाँ चलें भोगते !!
आओ,जीएं चलें सार्थक जीवंत जीवन
और मृत्यु ‘, के भय को, दिल से निकाल दें !
हर पल मरने के डर से, तो है अच्छा……,
‘ मृत्यु ‘, को चलें सदा जीतते यहाँ पे !!
– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान