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मृत्यु – सुनील गुप्ता

श्वासों का,  ठहर जाना

शरीर का ठंडा, पड़ जाना ,

आँखों का खुला रह जाना…..,

क्या यही है, ‘ मृत्यु ‘, की पहचान ?

 

शिव ,  से ‘ शव ‘, हो जाना

हाथ-पैरों का,  अकड़ जाना ,

शांत शरीर का निस्तेज पड़े रहना….,

क्या यही है, ‘ मृत्यु ‘, के लक्षण  ?

 

चेतनता का,  अभाव मात्र

स्पंदनता में, जड़ता का भाव ,

सभी इन्द्रियों का पूर्ण अभाव….,

क्या यही है, ‘ मृत्यु ‘, का प्रमाण  ?

 

शरीर से,  प्राण निकलना

पंच भूतों में जाके, मिल जाना ,

एक गहरी नींद में, सोए चले जाना….,

क्या यही है, ‘ मृत्यु ‘, का अंतिम सत्य  ?

 

नहीं नहीं नहीं है ये ‘ मृत्यु ‘, नहीं

ये ‘ मृत्य ‘, नहीं, कदापि नहीं  !

ये ‘ मृत्यु ‘,  तो मात्र शरीर छूटना..,

पांच प्राणों का संपूर्ण निर्वासन होना  !!

 

मृत्यु ,  तो घटित हो रही है

यहाँ पर हरेक पल, हर क्षण   !

जन्म से निरंतर, अविरल निर्बाध …,

बीतते समय के साथ, प्रतिपल- प्रतिक्षण !!

 

मृत्यु ,  तो है ‘ जीवन ‘, का सच

बस समय का है,  कुछ हेर-फेर   !

बचपन से जवानी और बुढ़ापा ……,

और बुढ़ापे का अवसान, है पुनर्जन्म का आगाज़ !!

 

हम नित्य ‘ मृत्यु ‘, को हो रहे हैं प्राप्त

पता ही नहीं, कब कैसे हो रहा यहाँ पे  !

फ़िर भी चले जा रहे,  ढ़ोते-लादे……,

अपने ही शरीर को,  कांधों पे अपने   !!

 

मृत्यु ,  तो मात्र है एक घटना

आज घटित हो या कल हो हमारे साथ !

पर, सच में हम मर रहे प्रतिपल-क्षण …..,

अपने कुत्सित विचारों, सोच के संग-साथ !!

 

चलें विधेयात्मक विचारों की बनाए श्रृंखलाएं

और प्राणों को देते, नव ऊर्जा शक्ति   !

नकारात्मक सोच परिणामों का फल…,

है मृत्यु , जिसे हम हर बार यहाँ चलें भोगते  !!

 

आओ,जीएं चलें सार्थक जीवंत जीवन

और मृत्यु ‘,  के भय को, दिल से निकाल दें  !

हर पल मरने के डर से,  तो है अच्छा……,

‘ मृत्यु ‘, को चलें सदा जीतते यहाँ पे  !!

– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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