हाथ में छाले पड़े हैं ,पैर कीचड़ में सने हैं !
मौत से होती लड़ाई, सामने बादल घने हैं !।
एक सपना था हमारा चाँद तारों तक उड़ेंगे ,
टूट जायें पंख बेशक नभ सितारों से जुड़ेंगे ,
आसमानी हौंसलों से देवता भी अनमने हैं !
मौत से होती लड़ाई सामने बादल घने हैं !!1
भारती की रंगशाला कब हमें ये रास आयी,
व्याज ने लूटी हमेशा खेत की सारी कमायी ,
युद्ध मौसम से लड़े हैं लोह के चावे चने हैं !
मौत से होती लड़ाई सामने बादल घने हैं !!2
हम विदुर से हो गए है कौरवों में पांडवों में ,
घाव गहरे हो गए हैं राजनैतिक तांडवों में ,
हम गलीचों से बिछे हैं शामयानों से तने हैं !
मौत से होती लड़ाई सामने बादल घने हैं !!3
घिर रहे काले अँधेरे नाविकों की बस्तियों पर ,
लहर ने खाये मछेरे मौत लौटी कस्तियों पर ,
सिंधु पर लंका सरीखे सेतु “हलधर “बांधने हैं !
मौत से होती लड़ाई सामने बादल घने हैं !!4
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून