जी रहे आज सब अजीयत मे,
वक्त कैसे कटे सियासत में।
काश हमको नशा नही होता,
नींद आने लगी है फुरसत मे।
रात आती बड़ा सता कर अब,
फूल खिलते बड़े नजाकत में।
तेरी आँखो से देर तक पी ली,
अब खुमारी मिली है जन्नत मे।
दुशमनों से डरा नही करते,
सामना हम करे जहानत मे।
यार जी ले जरा तू फुरसत मे,
छोड़ जीना अजी मसाफत मे।
रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़