दिखी पेड़ मे क्यो ये कोंपल नही है,
लदा है फलो से फिर हलचल नही है।
लगे आज मुझको मुहब्बत नही है,
कोई शय जमीं पे मुक्म्मल नही है।
करे आज पूजा ये पीपल समझ कर,
मुझे क्यूँ लगे ये पीपल नही है।
नही कोई प्यारा बिना माँ तुम्हारे,
मगर पास मेरे वो आँचल नही है।
दिया साथ हमने भी सुख दुख सम्भाले,
लगे आज हमको वो बेकल नही है।
तबाही सही आज सितमगर की हमने,
सहे जख्म फिर भी वो शीतल नही है।
खुदा तुमको माना,ये सच जानते हो,
हमारे बिना चैन हो,हल नही है।
मची अब तपिश है चली आज लू भी,
मगर नभ से दिखता तो बादल नही है।
सुना आज रोये, किया याद हमको,
मगर आँखों से शेष काजल नही है।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़