मनोरंजन

ग़ज़ल – रीता गुलाटी

दिखी पेड़ मे क्यो ये कोंपल नही है,

लदा है फलो से फिर हलचल नही है।

 

लगे आज मुझको मुहब्बत नही है,

कोई शय जमीं पे मुक्म्मल नही है।

 

करे आज पूजा ये पीपल समझ कर,

मुझे क्यूँ लगे ये पीपल नही है।

 

नही कोई प्यारा बिना माँ तुम्हारे,

मगर पास मेरे वो आँचल नही है।

 

दिया साथ हमने भी सुख दुख सम्भाले,

लगे आज हमको वो बेकल नही है।

 

तबाही सही आज सितमगर की हमने,

सहे जख्म फिर भी वो शीतल नही है।

 

खुदा तुमको माना,ये सच जानते हो,

हमारे बिना चैन हो,हल नही है।

 

मची अब तपिश है चली आज लू भी,

मगर नभ से दिखता तो बादल नही है।

 

सुना आज रोये, किया याद हमको,

मगर आँखों से शेष काजल नही है।

– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़

Related posts

रानी दुर्गावती-जिनकी भीषण ललकार से मुगल भी थर्राते थे – हितानंद शर्मा

newsadmin

काशी काव्य गंगा साहित्यिक मंच 99 वीं गोष्ठी संपन्न

newsadmin

अरे मनुष्य- जि. विजय कुमार

newsadmin

Leave a Comment