मंच वाले कवि मस्त ,कुंठित कवि हैं व्यस्त ,
सारणी बनाने लगे कौन कौन चोर है ।
फेसबुकिया खद्योत, दीप जैसी करें ज्योत ,
खेल नया खोज रहे कौन चोर चोर है ।।
चहुं ओर मचा शोर ,ये भी चोर वो भी चोर ,
चोर चोर को भी कहें ,चोर चोर चोर है ।
पूर्ण नहीं हुई खोज ,नए नाम आते रोज ,
शेष और कौन चोर चोर चोर चोर है ।।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून