मनोरंजन

शूरवीर सौदागर सिंह का शौर्य – हरी राम यादव

Neerajtimes.comसन 1962 से पहले भारत से चीन के दोस्ताना सम्बन्ध थे। विभिन्न अवसरों पर “हिन्दी चीनी भाई भाई“ के नारे लगते थे लेकिन अक्टूबर 1962 में चीन ने हमारे देश पर अकारण हमला कर दिया। 1962 में इस हमले का मुख्य बहाना विवादित हिमालय क्षेत्र था, लेकिन इसकी मुख्य वजह चीन में 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद दलाई लामा को भारत में शरण देना था । इसके बाद  सीमा पर हिंसक घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गयी। चीनी सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू कर दिए ।

20 अक्टूबर 1962 को बड़ी संख्या में चीनी सेना ने अरुणांचल प्रदेश की नामका छू घाटी के  धोला इलाके में 2 राजपूत रेजिमेंट की एक कंपनी की चौकी पर पीछे से हमला कर दिया।  कम्पनी हवलदार मेजर   सौदागर सिंह दो सिपाहियों के साथ एक पोस्ट पर  तैनात थे । चीनी सैनिकों के साथ हो रही इस लड़ाई में उन्होनें कई चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। उनके दोनों साथी भी इस युद्ध में घायल  हो गये। अपने दोनों साथियो के घायल हो जाने के बावजूद उन्होंने विपरीत परिस्थिति में भी अपने धैर्य और साहस को बनाये रखा और मोर्च पर डटे रहे। इसी बीच उनके बंकर के पास तीन चीनी सैनिक आ पहुंचे। कम्पनी हवलदार मेजर  सौदागर सिंह ने दो चीनी सैनिकों को अपनी सटीक गोलीबारी से मार गिराया, लेकिन  इसी बीच उनकी राइफल जाम हो गयी। हवलदार सौदागर सिंह अपने बंकर से बाहर निकले और तीसरे चीनी सैनिक को अपनी राइफल में लगे बैनेट से मार गिराया और उसकी स्वचालित राइफल छीन ली। वह उसी राइफल से चीनी सैनिकों पर टूट पड़े और अन्य कई चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतर दिया,

जब कम्पनी हवलदार मेजर  सौदागर सिंह की पोस्ट पर हमला बंद हुआ तब वह अपनी कंपनी के बेस की तरफ चल पड़े । घायल अवस्था में जब वह अपनी कंपनी में पहुंचे तो उनके हाथ में स्वचालित राइफल देख कर कंपनी के लोग  अवाक रह गये। जब यह बात तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू तक पहुंची तो उन्होंने उस  स्वचालित राइफल को मंगवाकर देखा और कम्पनी हवलदार मेजर  सौदागर सिंह को शाबाशी दी तथा  उनकी तरक्की कर उन्हें नायब सूबेदार बना दिया गया। कम्पनी हवलदार मेजर  सौदागर सिंह के अदम्य साहस, वीरता और कर्तव्यपरायणता के लिए उन्हें 20 अक्टूबर 1962 को वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

अभी तीन साल ही बीते थे कि सन 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। इस समय नायब सूबेदार सौदागर सिंह की यूनिट छम्ब के अग्रिम मोर्चे पर तैनात थी। वह  अपनी टुकड़ी के साथ 02 सितम्बर 1965 को आगे बढने लगे। उनके कंमाडर ने उन्हें आगे बढ़ने से रोका लेकिन गोलियों और विस्फोटकों के बीच किसी को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। सैनिक आपस में इशारों में बात कर रहे थे। विस्फोटकों से भरी उनकी जीप छम्ब से थोड़ी ही दूर आगे बढ़ने के बाद फंस गयी। जीप को बाहर निकालने के बाद जब उनकी टुकड़ी आगे बढ़ी  तो  जमीन के अन्दर बिछायी गई बारूदी सुरंग फटने से उनकी जीप के परखच्चे उड़ गए। इसी विस्फोट में  भारत माता का वीर सिपाही सदा के लिए चिर निद्रा में लीन हो गया।

कम्पनी हवलदार मेजर  सौदागर सिंह का जन्म आजमगढ़ की तहसील सगड़ी के गांव पूनापार बड़ागांव में 11 अप्रैल 1926 को श्रीमती बेइली देवी और श्री महातम सिंह के यहाँ हुआ था। इन्होने अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक पाठशाला, कैथौली और जूनियर हाईस्कूल की शिक्षा  सगड़ी से पूरी की ।  उसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और शौकिया तौर पर गरीब बच्चों को पढ़ाने लगे। इसी समय इनकी मुलाकात पी ए सी के जवान रामशबद सिंह से हुई। उनकी साहसिक बातें सुनकर इनके मन में भी सेना में जाने की इच्छा उत्पन्न हुई। 22 जनवरी 1948 को भारतीय सेना की राजपूत रेजिमेन्ट में भर्ती हुए और  प्रशिक्षण पूरा करने  के बाद वे 2 राजपूत रेजिमेंट में पदस्थ हुए। इनका विवाह सन 1946 में श्रीमती रत्ती देवी से हुआ । सेना में भर्ती होने के बाद भी उन्होंने अपनी पढाई जारी रखी और इण्टर की परीक्षा  उन्होंने सेना से उत्तीर्ण किया।  कम्पनी हवलदार मेजर  सौदागर सिंह के घर में एक पुत्री सुभावती तथा पुत्र सुधीर सिंह का जन्म हुआ , इनके पुत्र सुधीर सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं । स्वर्गीय सुधीर सिंह के दो पुत्र सत्यपाल सिंह और विनीत कुमार सिंह हैं। कम्पनी हवलदार मेजर  सौदागर सिंह के पौत्र सत्यपाल सिंह भी भारतीय सेना की 15 राजपूत रेजिमेंट में अपनी सेवाएँ दे  चुके हैं । इनकी पड़पोती संगिनी सिंह भी भारतीय सेना में अपनी सेवाएँ दे रही है ।

नायब सूबेदार सौदागर सिंह की वीरता और बलिदान को जीवंत बनाये रखने और शिक्षा के प्रति उनके लगाव को देखकर इनके गांव के लोगों ने आपसी सहयोग से धनराशि एकत्रित कर उनके नाम पर “बलिदान स्मारक सौदागर जूनियर हाई स्कूल, पूनापार” खोला था , जिसे 2006 में मान्यता मिली ।  इसी स्कूल  में उनकी एक  प्रतिमा लगायी गयी है। इनके गांव के स्कूल में स्थित इनके शहीद स्थल पर प्रतिवर्ष 30 जनवरी को इनकी वीरता की याद में एक मेला लगता है जिसमें आयोजित होने वाले कार्यक्रम में इनकी शौर्यगाथा को विभिन्न माध्यमों से लोगों को बताया जाता है ।

नायब सूबेदार सौदागर सिंह की वीरता और साहस प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है ।  अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये दो दो युद्ध लड़ने वाले तथा अपने प्राणों को माँ भारती के चरणों में अर्पित करने वाले  आजमगढ़ के वीर सपूत नायब सूबेदार सौदागर सिंह के नाम पर इनके जनपद में एक ईंट तक नहीं लगी है ।  अपने साहस और वीरता के बल पर इनके द्वारा चीनी सैनिक से छीनी गयी स्वचालित राइफल आज भी 2 राजपूत रेजीमेंट में इनकी वीरगाथा कह रही है।

– हरि राम यादव , अयोध्या , उत्तर प्रदेश

Related posts

कविता – रोहित आनंद

newsadmin

श्रावण माह में शिवार्चन – कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

newsadmin

अंग जनपद जहां शिला खंडों पर साकार हैं गणपति – शिवशंकर सिंह पारिजात

newsadmin

Leave a Comment