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जन गीत (जातिवाद) – जसवीर सिंह हलधर

जातिवाद की लपटों से अब ,मिलकर हमको लड़ना होगा ।

जीत मिले या हार मिले अब ,इस दानव से भिड़ना होगा ।।

 

हिन्दू को कमजोर किया है,कुंठित तुच्छ विचारों ने ही ।

वर्ण व्यवस्था जाति पाति में, बदली है मक्कारों ने ही ।

मानवता को आग लगाई ,किसने दिखलाई चतुराई,

गैर किसी से जंग नही ये ,अपनो से ही अड़ना होगा ।

जातिवाद की लपटों से अब,मिलकर हमको लड़ना होगा ।।1

 

खरपतवारों को फसलों से ,चुनकर हम ही तो छांटेंगे ।

अपने अनुभव का गंगाजल , पूरे जन गण में बांटेंगे ।

गीता वेद पुराण हमारे ,जाति वाद को सदा नकारे ,

जीवन रूपी रामायण में ,गीत नया अब गड़ना होगा ।

जातिवाद की लपटों से अब ,मिलकर हमको लड़ना होगा ।।2

 

देश धर्म का कर्जा चुकता ,करना है जाने से पहले ।

दुश्मन कोई गैर नहीं है ,अपने ही सब नहले दहले ।

दूर हो गए रिश्ते नाते ,जातिवाद का ढोल बजाते ,

घर की चौखट पर सोना अब ,खुद्दारी से जड़ना होगा ।

जातिवाद की लपटों से अब ,मिलकर हमको लड़ना होगा ।।3

 

वक्त पड़े पर साथ नहीं जो ,क्या करना उन संबंधों का ।

एक पक्ष की बात करे जो ,लाभ नहीं उन अनुबंधों का ।

जिन पर अब तक जान लुटाई ,दिखा रहे वो ही ठकुराई ,

कूए के मेंढक को “हलधर”,कूए में ही सड़ना होगा ।

जातिवाद की लपटों से अब ,मिलकर हमको लड़ना होगा ।।4

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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