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दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क में क्यों होते है सिग्नल फेल? – प्रियंका सौरभ

neerajtimes.com – आखिर क्यों बार-बार पटरी से उतर रही भारतीय रेल? कहीं ये बड़े कारण तो नहीं। कवच जैसे एटीपी सिस्टम की अनुपस्थिति से ओवरस्पीडिंग या सिग्नल उल्लंघनों के कारण होने वाली टक्करों को रोकना मुश्किल हो जाता है। पुरानी पटरियाँ, खराब रखरखाव कार्यक्रम के साथ मिलकर, अक्सर पटरी से उतरने और दुर्घटनाओं का कारण बनती हैं। 2017 कलिंग उत्कल एक्सप्रेस के पटरी से उतरने की घटना का कारण ट्रैक की खराब स्थिति को बताया गया था। अत्यधिक काम करने वाले कर्मचारी, विशेष रूप से लोकोमोटिव पायलट, अक्सर तनावपूर्ण परिस्थितियों में काम करते हैं, जिससे त्रुटियाँ होती हैं।

भारत का रेलवे बुनियादी ढांचा विशाल लेकिन पुराना है, जिससे विभिन्न कमियों के कारण दुर्घटनाओं का ख़तरा बना रहता है। हाल ही में सिग्नल की विफलता के कारण मैसूर-दरभंगा एक्सप्रेस चेन्नई के पास एक स्थिर मालगाड़ी से टकरा गई, जिससे मज़बूत सुरक्षा उपायों की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश पड़ा। दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क में से एक होने के बावजूद, इस तरह की घटनाएँ ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए आधुनिकीकरण की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। ट्रेन में सुरक्षित सफ़र को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं। ट्रेन में यात्रा करने वाले लोग अपनी मंज़िल तक सुरक्षित पहुँचेंगे या नहीं, हीं ट्रेन हादसे का शिकार तो नहीं हो जाएगी।

दरअसल, भारतीय रेलवे से हर दिन एक लाख किमी से अधिक फैले देशव्यापी ट्रेक नेटवर्क पर करीब ढाई करोड़ यात्रियों को अपने गंतव्य स्थान तक पहुँचाती है। साल 2019-20 के लिए एक सरकारी रेलवे सुरक्षा रिपोर्ट में पाया गया है कि 70 फीसदी रेलवे दुर्घटनाओं के लिए उनका पटरी से उतरना ज़िम्मेदार था, जो पिछले वर्ष 68 फीसदी से अधिक था। इसके बाद ट्रेन में आग लगने और टक्कर लगने के मामले आते हैं, जो कुल दुर्घटनाओं में क्रमश: 14 और आठ फीसदी के लिए ज़िम्मेदार हैं। इस रिपोर्ट में साल 2019-20 के दौरान 33 यात्री ट्रेनों और सात मालगाड़ियों से सम्बंधित 40 पटरी से उतरने की घटनाएँ गिनाई गईं। इनमें से 17 पटरी से उतरने की घटनाएँ ट्रैक खराबियों के कारण हुईं। जबकि नौ घटनाएँ ट्रेनों, इंजन, कोच, वैगन में खराबी के कारण हुईं है।

ट्रेनों का पटरी से उतरना रेलवे के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। एक ट्रेन कई कारणों से पटरी से उतर सकती है। ट्रैक का रखरखाव खराब हो सकता है, कोच खराब हो सकते हैं और गाड़ी चलाने में गलती हो सकती है। ट्रेन हादसों को रोकने के लिए ट्रेन की पटरियों का मरम्मत कार्य होते रहना बहुत ज़रूरी है। धातु से बनी रेलवे पटरियाँ गर्मी के महीनों में फैलती हैं और सर्दियों में तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण सिकुड़ती है। ऐसे में इन्हें नियमित रखरखाव की ज़रूरत होती है। जरा-सी लापरवाही बड़े हादसे की वज़ह बन सकती है। ढीले ट्रैक को कसना, स्लीपर बदलना और अन्य चीजों के अलावा, चिकनाई और समायोजन स्विच। इस तरह का ट्रैक निरीक्षण पैदल, ट्रॉली, लोकोमोटिव और अन्य वाहनों द्वारा किया जाता है।

बुनियादी ढाँचे की कमियाँ दुर्घटनाओं में योगदान दे रही हैं, कई वर्ग अभी भी मैन्युअल सिग्नलिंग पर भरोसा करते हैं, जिससे मानवीय त्रुटि का ख़तरा बढ़ जाता है, जो दुर्घटनाओं का एक महत्त्वपूर्ण कारक है। 2024 मैसूर-दरभंगा टक्कर सिग्नलिंग विफलता के कारण हुई, जिसके कारण ट्रेन को ग़लत ट्रैक पर ले जाया गया। दिल्ली-कोलकाता जैसे मार्गों पर भारी भीड़भाड़ होती है, जिससे अक्सर देरी होती है और नेटवर्क पर बढ़ते दबाव के कारण सुरक्षा से समझौता होता है।

कवच जैसे एटीपी सिस्टम की अनुपस्थिति से ओवरस्पीडिंग या सिग्नल उल्लंघनों के कारण होने वाली टक्करों को रोकना मुश्किल हो जाता है। पुरानी पटरियाँ, खराब रखरखाव कार्यक्रम के साथ मिलकर, अक्सर पटरी से उतरने और दुर्घटनाओं का कारण बनती हैं। 2017 कलिंग उत्कल एक्सप्रेस के पटरी से उतरने की घटना का कारण ट्रैक की खराब स्थिति को बताया गया था। अत्यधिक काम करने वाले कर्मचारी, विशेष रूप से लोकोमोटिव पायलट, अक्सर तनावपूर्ण परिस्थितियों में काम करते हैं, जिससे त्रुटियाँ होती हैं।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की 2021 की रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी सीधे सुरक्षा को प्रभावित करती है। कई भारतीय रेलगाड़ियाँ पुराने कोचों का उपयोग करती हैं, जिनमें क्रैशवर्थी डिज़ाइन जैसी आधुनिक सुरक्षा सुविधाओं का अभाव होता है।

2023 ओडिशा दुर्घटना में पुराने आईसीएफ कोच शामिल थे, जो आधुनिक एलएचबी कोचों की तुलना में कम प्रभाव-प्रतिरोधी थे। मज़बूत आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र की कमी दुर्घटना होने पर क्षति को बढ़ा देती है। 2023 बालासोर दुर्घटना में मलबा हटाने में 6 घंटे से अधिक का समय लगा, जिससे महत्त्वपूर्ण बचाव कार्यों में देरी हुई।

इन कमियों को दूर करने में ‘कवच’ प्रणाली की भूमिका बहुत ही अहम है, कवच प्रणाली लाल सिग्नल पार करने पर ट्रेनों को स्वचालित रूप से रोक देती है, जिससे खतरनाक टकराव को रोका जा सकता है। रेल मंत्रालय ने दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा मार्गों पर कवच लागू किया, जिसके परिणामस्वरूप घटनाओं में कमी आई। कवच यह पता लगाता है कि दो ट्रेनें एक ही ट्रैक पर हैं और टक्कर को रोकने के लिए स्वचालित रूप से ब्रेक लगाती है। परीक्षण के दौरान सिस्टम ने संभावित दुर्घटनाओं को सफलतापूर्वक टाल दिया दक्षिण-मध्य रेलवे नेटवर्क पर कवच सुनिश्चित करता है कि ट्रेनें गति सीमा से अधिक न चलें, महत्त्वपूर्ण कार्यों को स्वचालित करके, कवच लोकोमोटिव पायलटों पर कार्यभार कम करता है, मानवीय त्रुटियों को कम करता है।

परीक्षणों से पता चला है कि कवच-संरक्षित ट्रेनों का उपयोग करने वाले पायलटों के बीच थकान सम्बंधी त्रुटियों में 50% की कमी आई है। कवच का एकीकरण कई बुनियादी ढांचे की चुनौतियों का समाधान करते हुए अधिक डिजिटलीकृत और स्वचालित रेलवे प्रणाली की ओर बदलाव का संकेत देता है। राष्ट्रीय रेल योजना 2030 में कवच को 34, 000 किमी के उच्च-घनत्व वाले मार्गों पर विस्तारित करने की परिकल्पना की गई है। इस प्रणाली को वार्षिक रेलवे पूंजीगत व्यय के 2% पर लागू किया जा सकता है, जो नेटवर्क को आधुनिक बनाने के लिए एक लागत प्रभावी तरीक़ा प्रदान करता है।

2024 के रेलवे बजट में ₹1, 112.57 करोड़ आवंटित किए गए हैं प्रमुख रेलवे गलियारों में कवच स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (एटीपी) प्रणाली का विस्तार करने के लिए, ट्रेन स्थानों पर वास्तविक समय डेटा प्रदान करके, कवच दुर्घटनाओं के मामले में त्वरित प्रतिक्रिया की सुविधा प्रदान करता है, जिससे सुरक्षा परिणामों में सुधार होता है। कवच कार्यान्वयन के बाद, बेंगलुरु-चेन्नई मार्ग पर आपातकालीन प्रतिक्रिया समय कम हो गया है।

ट्रेन के पटरी से उतरने की एक वज़ह नहीं, बल्कि कई वजहें हैं। सबसे मुख्य कारण रेलवे ट्रैक पर मैकेनिकल फॉल्ट यानी रेलवे ट्रैक पर लगने वाले उपकरण का खराब हो जाने को माना जाता है। इसके अलावा ये हादसे उस वक़्त होते हैं, जब पटरियों पर दरार पड़ जाती हैं। वहीं, ट्रेन के डिब्बों को बाँध कर रखने वाले उपकरण का ढीला होना भी इसका एक कारण हो सकता है। इसके अलावा एक्सेल जिस पर ट्रेन की बोगी रखी होती है, उसका टूटना भी ट्रेन के डिरेल होने की एक संभावित वज़ह हो सकता है। लगातार चलते रहने के कारण ट्रेन की पटरियों से पहियों का घिस जाना भी ट्रेन के पटरी से उतरने की वज़ह हो सकता है। गर्मी के मौसम में पटरियों के स्ट्रक्चर में कई बार बदलाव आ जाता है। इसके अलावा तेज चलती ट्रेन को तेज स्पीड से मोड़ना या फिर ब्रेक लगा देना भी ट्रेन के पटरी छोड़ने की वज़ह हो सकता है।

इसे रोकने का एक ही तरीक़ा है मरम्मत कार्य चलता रहे। थोड़ी भी गड़बड़ी नज़र आने पर उसे तुरंत ठीक किया जाए। जबकि भारतीय रेलवे को महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचागत कमियों का सामना करना पड़ता है, कवच प्रणाली सुरक्षा और दक्षता बढ़ाने के लिए एक परिवर्तनकारी समाधान प्रदान करती है। सिग्नलिंग प्रणालियों को आधुनिक बनाकर, टकरावों को रोककर और ट्रेन परिचालन में सुधार करके, कवच उन कई कमियों को दूर कर सकता है जो दुर्घटनाओं में योगदान करती हैं। भारत में सुरक्षित रेल यात्रा सुनिश्चित करने के लिए इसके कार्यान्वयन को पूरे नेटवर्क में विस्तारित करना महत्त्वपूर्ण है।

-प्रियंका सौरभ , उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045 (मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप)

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