विजया दशमी पर्व हमें यह, याद दिलाने आता है।
सच पर आँच नहीं आती है, झूठ नष्ट हो जाता है।
दुर्योधन ने मार्ग चुना जब, त्याग नीति हठधर्मीं का।
वंश पतन के साथ ताज वह, पहना तब दुष्कर्मी का।
सच है मन को करनी का फल, अंत समय तड़पाता है….।
रावण जैसा ज्ञानी जग में, नामुमकिन मिल पाना था।
किन्तु अहं ने उसको अपयश,के घर दिया ठिकाना था।
यश को चकनाचूर करे मद, वक्त हमें बतलाता है…..।
सद् ग्रंथों का सारांश हमें, बात यही समझाता है।
सत्य, न्याय के पथ का राही, कभी नहीं पछताता है।
रामचन्द्र के गुण सारा जग , इसीलिए तो गाता है…..।
– मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश